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अपने हिस्से की खुशी

अपने हिस्से की खुशी 

(भाग १)

कॉल बेल की आवाज सुनकर माधुरी ने दरवाजे को खोला तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।
उसके सामने उसकी कॉलेज की सहेली आरती खड़ी थी। अरे आरती तुम! तूने कोई खबर भी नहीं की आने की।
आरती -''मैं तुम्हें सरप्राइस देना चाहती थी ""।
अच्छा अंदर चल बैठ कर बातें करेंगे ।
आरती अपना बैग रखकर वहीं सोफे पर बैठ जाती है। 
"तुम फ्रेश हो जाओ, मैं तेरे लिए चाय बनाती हूं ।
दोनों सहेलियां चाय पीते हैं और कॉलेज की बातें करती हैं।
माधुरी कहती है "- थोड़ी देर रेस्ट कर लो मैं तब तक खाने की तैयारी करती हूं ।
तब तक तो बच्चे भी स्कूल से आ जाएंगे । 
थोड़ी देर में बच्चे स्कूल से आ जाते है। माधुरी बच्चों से कहती है कि बच्चों तुम लोग ड्रेस चेंज करके हाथ मुंह धो कर आ जाओ। लेकिन बच्चे अभी थोड़ी देर आराम करना चाहते हैं पर माधुरी के बार- बार कहने पर हाथ मुंह धो कर ड्रेस चेंज करके आ जाते हैं और सभी मिलकर एक साथ खाना खाते हैं ।
आरती -""वाह मधु क्या खाना बनाया है शादी से पहले तो तुम किचन की तरफ देखना भी नहीं पसंद करती थी।""

अब वह बच्चों से कहती है कि बच्चों थोड़ी देर जाकर सो जाओ नहीं तो रात में तुम लोग को जल्दी नींद आने लगेगी और पढ़ाई नहीं करोगे।
लेकिन बच्चे थोड़ी देर टीवी देखना चाह रहे थे पर मां के बार-बार कहने के कारण वह दोनों जाकर सो गए ।
दोनो सहेलियां लेट कर बातें करने लगी और बातें करतेकरते सो गईं।
शाम को माधुरी के पति विनय ऑफिस से आने का टाइम 6:00 बजे है ।वह 5:00 बजे सो कर उठती है और घर को व्यवस्थित करती है इतने में काम वाली बाई आ जाती है और वह माधुरी से पूछ पूछ कर के कामों को निपटाती है ।तब तक 6:00 बज जाता है , वह चाय चढ़ा देती है और बच्चों को आ करके जगाती है।
काम करते हुए बीच-बीच में माधुरी बोलती जाती है कि अभी तक आए नहीं रोज तो तक आ जाते हैं और उसका चेहरा भी कुछ उतरा उतरा सा लगता है आरती अपनी सहेली के चेहरे को बड़े ध्यान से देखती है उस पर चिंता की रेखाएं स्पष्ट दिखाई दे रही थी दोनों सहेलियां साथ में बैठकर चाय पी रही थी लेकिन माधुरी का ध्यान अपने पति विनय में ही लगा हुआ था की कि वह क्यों इतनी देर कर रहे हैं और कोई फोन भी नहीं करते आरती कहती है --"यार तू इतना टेंशन कब से लेने लग गई विवाह के पहले तो तू एकदम मस्त रहा करती थी ।"
तभी उसके पति विनय आ जाते हैं। उन्हें देखकर माधवी चैन की सांस लेती है और उनसे देर से आने का कारण पूछती है ।
विनय बताते हैं कि आज ऑफिस में एक अर्जेंट मीटिंग आ गई थी और उन्होंने फोन स्विच ऑफ कर दिया था। इसलिए वह फोन नहीं कर पाए थे।
  पति को चाय नाश्ता कराने के बाद माधुरी रात के खाने की तैयारी में जुट जाती है।
आरती उससे कहती है --मैं तेरा हाथ बंटा देती हूं तो वह कहती है कि नहीं तू यहीं बैठ मैं सारे काम कर लूंगी
मुझे आदत है ।
रात का खाना सभी लोग एक साथ खाते हैं और उसके बाद माधुरी किचन को समेट कर समेटती है ।
आरती को कल प्रेजेंटेशन के लिए जाना है अतः वह अपने प्रेजेंटेशन की तैयारी करती है ।
सुबह आरती 7:00 बजे उठती है तो देखती है कि माधुरी ने नाश्ता तैयार कर लिया है और बच्चे तैयार होकर स्कूल जा रहे हैं ।
आरती भी फटाफट तैयार होती है और वह भी प्रेजेंटेशन के लिए निकल जाती है यह कहकर कि वह 12:00 बजे तक आ जाएगी आरती दोपहर में 12:00 बजे आती है तो देखती है कि माधुरी घर के कामों में लगी हुई है और बच्चों के स्कूल से आने का इंतजार कर रही है 2:30 बज गया लेकिन बच्चे अभी तक स्कूल से नहीं आए जबकि रोज 2:00 बजे तक आ जाते हैं ।
वह बार-बार बाहर जाकर रोड की तरफ देखती है जहां बच्चों की बस आती है । आरती कहती है यार चिंता मत कर बच्चे आ जाएंगे । 
इतने छोटे भी नहीं है माधुरी का बड़ा बेटा ट्वेल्थ क्लास में और बेटी 10th क्लास में पढ़ती है।
3:30 बज गया तब बच्चे घर आए आरती बच्चों के ऊपर चिल्लाती है कि तुम लोग इतनी देर तक कहां थे ?
बच्चे कहते हैं--'"मम्मा स्कूल में अचानक मैजिक शो का आयोजन हो गया इसलिए घर आने में देर हो गया।
माधुरी अभी बच्चों को कुछ ना कुछ बोले जा रही थी।
  आरती बहुत आश्चर्यचकित होती है कि क्या यह वही माधुरी है जो उसके साथ कॉलेज में पढ़ती थी ।
  कॉलेज के दिनों में इसका कैसा व्यक्तित्व होता था और आज इसमें कितना परिवर्तन आ गया है ।
आज यह अपने परिवार में खोकर खुद की पहचान खो चुकी है हर समय बच्चों और पति की चिंता में ही खोई रहती है ।उनके अलावा इसकी सोच और कहीं तक आगे बढ़ती ही नहीं ।
आरती उससे कहती है--" तू कॉलेज के दिनों में कितनी एक्टिव हुआ करती थी । कॉलेज की हर एक्टिविटी में बढ़ चढ़कर पार्टिसिपेट करती थी । डिबेट कंपटीशन हो या पोएट्री कंपटीशन .... सब में कोई न कोई स्थान जरूर बनाती थी। अब तुम्हारे बच्चे बड़े हो गए हैं और तुम थोड़ा बहुत अपने ऊपर भी ध्यान दो ।  
माधुरी--" हम गृहिणियों का जीवन घर तक ही सीमित रहता है । हम लोग चाहते हुए भी पति और बच्चों से आगे की कोई भी चीज सोच नहीं पाती हैं । अब तुम ठहरी नौकरी पेशा, तो तुम्हें यह चीजें दोयम दर्जे की लगेंगी।  

                                                                              क्रमशः
स्नेहलता पाण्डेय'स्नेह'
नईदिल्ली

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2 Comments

Arman

27-Nov-2021 12:04 AM

Good

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Zeba Islam

21-Nov-2021 06:02 PM

Nice

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